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शीघ्र लिंक

हमारा साकेत परिवार

बी. एड. विभाग का प्रथम सत्र दिनांक 2 सितम्बर 2011 को परम पूज्यनीय गुरू शिरोमणि इलाहाबाद विश्वविघालय के निवर्तमान अघिष्ठाता कला संकाय एवं महाविघालय के संरक्षक डॉ. रामशकल पाण्डेय की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विज्ञान एकादमी के सचिव डॉ. नीरज कुमार, इलाहाबाद विश्वविघालय के गणित विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविघालय के शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता डॉ. एस पी त्रिपाठी एवं पी. बी. पी. जी. कालेज की मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ. चंदा चक्रवर्ती की गौरवमयी उपस्थिति में उ. प्र. प्राविधिकी विश्वविघालय के प्रथम कुलपति प्रो. जी. एन. पाण्डेय ने शुभारम्भ किया।

प्रथम सत्र का शुभारम्भ था मेरे मस्तिष्क में अनेकानेक प्रश्न उठ रहे थे मुझे भय था कि पता नहीं महाविघालय अपने दायित्वों के निर्वहन में सफल हो सकेगा अथवा नहीं किन्तु शिरडी के साई समर्थ की अनुकम्पा से डॉ. श्रीमती नीलिमा श्रीवास्तव प्राचार्या के कुशल नेतृत्व में डॉ. दीपक शुक्ला विभागाध्यक्ष एवं बी. एड. विभाग की टीम ने जो काम किया वो सचमुच सराहनीय रहा। बी. एड. विभाग के शिक्षकों ने अपने दायित्वों का निर्वहन जितनी कुशलता से किया वह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारें हमारे जनपद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश माननीय श्री अली जामिन साहब के इन शब्दों में व्यक्त होती है महाविघालय बहुत से हैं किन्तु इस महाविघालय ने जिस स्तर का प्रदर्शन किया है वो अनुकरणीय है। डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविघालय के अघिष्ठालय के अघिष्ठाता शिक्षा संकाय डॉ. एस पी त्रिपाठी ने सत्र के अंतिम सेमिनार के अवसर पर आशा व्यक्त की, कि इस महाविघालय मे बी. एड. विभाग के क्रियाकलाप एवं शिक्षण स्तर इतनी उन्नति कर रहा है कि महाविघालय की छात्राएं विश्वविघालय में अपना स्थान बना सकती है। ऐसे ही विचार क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकरी इलाहाबाद डॉ. दुर्गेश शुक्ला के भी इस महाविघालय के बी. एड. विभाग के विषय मे रहें हैं पोस्ट ग्रेजुएट कालेज पट्टी के शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आर के मिश्रा जी ने भी महाविघालय की प्रगति को उल्लेखनीय प्रगति के रूप में रेखांकित किया है। गत् वर्ष की छात्राध्यापिकाएं अपनी पूर्ण ऊर्जा के साथ महाविघालय की परम्पराओं को संजोने में लगी रही।

गत् वर्ष के क्रियाकलापों की समीक्षा के उपरांत हम अतीत की खिडकी से महाविघालय की स्थापना के उद्देश्यों को झाकना चाहेंगे । वस्तुतः इस महाविघालय की स्थापना की प्रेरणा इलाहाबाद विश्वविघालय के एक प्रोफेसर की जापान यात्रा से मिली थी। सम्मानित प्रो. महोदय ने अपने यात्रा वृतान्त में महाविघालय के संस्थापक स्व राधे मोहन लाल को बताया कि विश्व में राष्ट्रीयता का सर्वाधिक बोध जापान वासियों को है जिसके मूल में स्कूल शिक्षा में एक छोटी सी प्रतिज्ञा है जिसके अनुसार यदि भगवान बुद्ध तुम्हारा सर मांगें तो क्या करोगे? बालक का उत्तर होता है -अपना सर दे देंगें और यदि भगवान बुद्ध जापान का अपमान करें तो क्यो करोगे बालक का उत्तर होता है गौतम बुद्ध का सर ले लेंगें । यहीं वो प्रेरणा थी जिसने इस महाविघालय को सुद्धढ आधार दिया एवं शिक्षा का लक्ष्य राष्ट्रीय चरित्र निर्माण हो विषय पर विस्तृत चर्चा हेतु देश के प्रतिष्ठित विश्वविघालयों के शिक्षाविदों को आमंत्रित किया गया और उनकी शिक्षाओं को आधार बनाकर इस महाविघालय की स्थापना की गई किन्तु हमारा संकल्प तो हमें तब प्राप्त होगा जब हमारे महाविघालय की छात्राध्यापिकाएं इस मूलमंत्र को लेकर जिस-जिस विघालय में जाए उनमें राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि रूप से विधार्थियों के मन-मस्तिष्क में उतार देंगी, महाविघालय के संस्थापक की आत्मा तब तृप्त होगी जब देश के कोने-कोने से ये आवाज उठेगी कि शिक्षा का लक्ष्य राष्ट्रीय चरित्र निर्माण है और साकेत नाम नही एक संस्कृति है ये वाक्य तब मूर्तरूप् लेगा जब हमारी छात्राघ्यापिकाएं एक शिक्षिका के रूप् में अपने ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करेंगी जिनका व्यक्तित्व विनम्रता, करूणा, दया, ममता, सहिष्णता और बुद्धिमत्ता के कुशल संयोजन से निर्मित होगा जिन्हें अपने भारतीय होने पर गर्व होगा और भारतीयता ही उनका धर्म होगा एवं जीवमात्र की सेवा का संकल्प लें और साकेत नाम नहीं एक संस्कृति है की सार्थकता को सिद्ध करें।

जयहिन्द

अरविन्द श्रीवास्तव
प्रबन्धक